लोगों की कमजोर होती याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता; सामने आई इसकी सबसे बड़ी वजह
आमतौर पर वायु प्रदूषण को फेफड़ों और हार्ट की समस्याओं के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है पर समय के साथ ये ब्रेन हेल्थ के लिए भी खतरनाक साबित होता जा रहा है। समय के साथ ये ब्रेन हेल्थ के लिए भी खतरनाक साबित होता जा रहा है।
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Sanjay Purohit
Created AT: 15 फरवरी 2025
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ब्रेन हेल्थ में होने वाली समस्याएं स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए गंभीर चिंता का कारण बनी हुई हैं। समय के साथ इसका खतरा बढ़ता ही जा रहा है। अध्ययनों में इसके लिए खराब होती लाइफस्टाइल और खान-पान से संबंधित दिक्कतों को एक कारण माना जाता रहा है।

एक नई रिपोर्ट में विशेषज्ञों की टीम ने बताया कि लोगों की सोचने-समझने की क्षमता समय के साथ कम होती जा रही है, वयस्कों से लेकर बुजुर्ग तक सभी इसका शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने याददाश्त में कमी को लेकर भी शिकायत की है। मस्तिष्क से संबंधित इन सभी विकारों के लिए वैज्ञानिकों ने बढ़ते वायु प्रदूषण को प्रमुख कारण माना गया है।

ब्रिटेन में किए गए ताजे अध्ययन में विशेषज्ञों की टीम ने बताया कि वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण की समस्या तेजी से बढ़ती जा रही है। आमतौर पर वायु प्रदूषण को फेफड़ों और हार्ट की बीमारी के लिए जिम्मेदार माना जाता रहा है पर समय के साथ ये ब्रेन हेल्थ के लिए भी खतरनाक साबित होता जा रहा है। प्रदूषित हवा में थोड़े समय के लिए भी सांस लेने से आपकी याददाश्त और सोचने-समझने की क्षमता पर नकारात्मक असर हो सकता है।

वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर मस्तिष्क के लिए ठीक नहीं

बर्मिंघम और मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में पाया कि वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर विशेषतौर पर पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से आपकी सेहत पर कई प्रकार से नकारात्मक असर हो सकता है।

ध्यान केंद्रित करने में लोगों को हो रही हैं दिक्कतें

जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित इस अध्ययन के निष्कर्षों से पता चलता है कि जो लोग प्रदूषित हवा के अधिक संपर्क में रहते हैं उनके लिए ध्यान केंद्रित करना और भावनाओं पर नियंत्रण भी मुश्किल हो सकता है। दिमागी भटकाव की ये स्थिति रोजमर्रा के कामों पर भी गहरा असर डाल सकती है।

शोधकर्ताओं ने इस अध्ययन में 26 वयस्कों को दो समूहों में बांट कर अध्ययन किया है। इसमें एक समूह वह था जो प्रदूषित हवा के संपर्क में रहता था जबकि और दूसरे समूह के लोग स्वच्छ हवा में सांस लेते थे।

अध्ययन में क्या पता चला?

दोनों समूह के लोगों की मस्तिष्क की कार्यक्षमता की जब जांच की गई तब पता चला कि जो लोग प्रदूषित वातावरण वाली जगहों पर रहते थे उनमें समय के साथ आत्म नियंत्रण और ध्यान केंद्रित करने जैसी समस्याएं बढ़ती गईं। विशेषज्ञों ने अध्ययन में पाया कि हवा में मौजूद महीन कण जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) कहा जाता है, वह दिमागी क्षमता पर नकारात्मक असर डालते हैं। इतना ही नहीं कुछ घंटे भी पीएम 2.5 की संपर्क में रहना आपकी सेहत के लिए कई प्रकार से नुकसानदायक हो सकता है।

क्या कहता है डब्ल्यूएचओ?

डब्ल्यूएचओ ने भी सिफारिश की है कि एक दिन में हवा में मौजूद पीएम 2.5 का स्तर 15 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक नहीं होना चाहिए। वर्ष भर में यह स्तर पांच माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से कम होना चाहिए। शोध से पता चलता है कि वायु प्रदूषण, संज्ञानात्मक गिरावट का कारण बनकर स्मृति को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं। प्रदूषित हवा के अधिक संपर्क में रहने वाले लोगों में डिमेंशिया जैसी गंभीर मस्तिष्क समस्याओं को भी बढ़ते हुए देखा गया है। प्रदूषित हवा के सूक्ष्म कण मस्तिष्क में सूजन और रक्त के प्रवाह में कमी को भी बढ़ाने वाले हो सकते हैं जिसके कई गंभीर दुष्प्रभावों का जोखिम बढ़ जाता है।

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